The Great Depression
महान मंदी (The Great Depression) 20वीं सदी की सबसे गंभीर आर्थिक मंदी थी, जो 1929 में शुरू हुई और 1930 के दशक के अंत तक चली। इसका प्रभाव न केवल अमेरिका बल्कि पूरे विश्व पर पड़ा। इसका विस्तार पूर्वक विवरण इस प्रकार है:
पृष्ठभूमि और कारण:
- 1920 के दशक की समृद्धि: प्रथम विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और अन्य विकसित देशों में आर्थिक समृद्धि आई थी। यह "रोअरिंग ट्वेंटीज़" के रूप में जाना जाता है।
- स्टॉक मार्केट का बुलबुला: 1920 के दशक में स्टॉक मार्केट में भारी वृद्धि हुई। लोग कर्ज लेकर शेयर खरीद रहे थे, जिससे स्टॉक की कीमतें असामान्य रूप से बढ़ गईं।
- 1929 का स्टॉक मार्केट क्रैश: 24 अक्टूबर 1929 को "ब्लैक थर्सडे" के रूप में जाना जाता है, जब शेयर बाजार में भारी गिरावट आई। इसके बाद 29 अक्टूबर को "ब्लैक ट्यूसडे" को बाजार पूरी तरह से ध्वस्त हो गया।
प्रभाव:
- बेरोजगारी: लाखों लोग बेरोजगार हो गए। अमेरिका में बेरोजगारी दर 25% तक पहुंच गई थी।
- बैंक विफलता: हजारों बैंक बंद हो गए क्योंकि लोग अपने पैसे निकालने के लिए बैंकों पर धावा बोल रहे थे।
- वैश्विक प्रभाव: अमेरिका की मंदी का असर यूरोप और अन्य देशों पर भी पड़ा। वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई।
- कृषि संकट: किसानों की स्थिति खराब हो गई। फसल की कीमतें गिर गईं, और किसान कर्ज में डूब गए।
सरकार की प्रतिक्रिया:
- हर्बर्ट हूवर की नीति: उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर ने शुरुआत में बाजार को खुद ही ठीक होने देने की नीति अपनाई, लेकिन इससे स्थिति और बिगड़ गई।
- फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट का न्यू डील: 1933 में फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट राष्ट्रपति बने और "न्यू डील" नामक एक श्रृंखला कार्यक्रमों की शुरुआत की। इसमें सार्वजनिक कार्यों के लिए सरकार के खर्च, बैंकिंग सुधार और सामाजिक सुरक्षा जैसे कदम शामिल थे।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव:
- गरीबी और भूख: लोग भोजन और बुनियादी आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहे थे। "सूप किचन" और "ब्रेड लाइन" आम दृश्य बन गए।
- मनोबल और मानसिक स्वास्थ्य: लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ा। अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ गए।
- साहित्य और कला: इस अवधि में गरीबी और संघर्ष को दर्शाने वाले साहित्य और कला का विकास हुआ। जॉन स्टीनबेक की "द ग्रेप्स ऑफ़ रथ" जैसी रचनाएँ प्रसिद्ध हुईं।
महान मंदी (The Great Depression) का प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं था; इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा और व्यापक असर पड़ा। विश्व के विभिन्न हिस्सों में इसके परिणाम अलग-अलग रूप में देखे गए। यहाँ वैश्विक परिणामों का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है:
1. वैश्विक आर्थिक परिणाम:
वैश्विक व्यापार में गिरावट:
- महान मंदी के दौरान वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई। 1929 से 1932 के बीच, वैश्विक व्यापार लगभग 50% तक कम हो गया। इससे अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हुईं, विशेषकर वे देश जो निर्यात पर निर्भर थे।
- औद्योगिक देशों में उत्पादन में कमी आई, और उनकी आयात मांग में गिरावट के कारण निर्यातक देशों की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई।
बैंकिंग संकट:
- अमेरिका और यूरोप में बैंकिंग सिस्टम पर भारी दबाव पड़ा। बैंक विफलताएं आम हो गईं, जिससे निवेशकों और आम जनता का विश्वास टूट गया।
- कई देशों में बैंकिंग प्रणाली की विफलता ने वित्तीय अस्थिरता को बढ़ावा दिया और आर्थिक गतिविधियों को ठप कर दिया।
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट:
- अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, और फ्रांस जैसे प्रमुख औद्योगिक देशों में उत्पादन में भारी गिरावट आई। फैक्ट्रियां बंद हो गईं, और लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
- औद्योगिक गतिविधियों की इस गिरावट ने अन्य क्षेत्रों में भी आर्थिक मंदी को तेज किया।
2. सामाजिक परिणाम:
बेरोजगारी और गरीबी:
- कई देशों में बेरोजगारी दर 20% से अधिक हो गई। अमेरिका में यह 25% तक पहुंच गई, जबकि जर्मनी और ब्रिटेन में भी लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
- बेरोजगारी और आय में कमी ने गरीबी और भुखमरी को बढ़ावा दिया। लोग बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संघर्ष करने लगे।
मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक अस्थिरता:
- आर्थिक संकट ने मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाला। आत्महत्या के मामलों में वृद्धि हुई, और लोगों में निराशा फैल गई।
- कई देशों में सामाजिक अस्थिरता बढ़ी, और सामाजिक आंदोलन और हड़तालें आम हो गईं।
3. राजनीतिक परिणाम:
राजनीतिक उथल-पुथल और चरमपंथ का उदय:
- महान मंदी ने कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया। जर्मनी में आर्थिक संकट ने नाजी पार्टी और एडॉल्फ हिटलर को सत्ता में आने का मार्ग प्रशस्त किया। लोगों ने लोकतांत्रिक सरकारों पर से विश्वास खो दिया और चरमपंथी पार्टियों को समर्थन देना शुरू कर दिया।
- इटली में भी, आर्थिक कठिनाइयों ने बेनिटो मुसोलिनी के फासीवादी शासन को मजबूत किया।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव:
- आर्थिक संकट ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और व्यापार को बाधित किया। देशों ने अपने-अपने उद्योगों की रक्षा के लिए संरक्षणवादी नीतियां अपनाईं, जिससे व्यापार युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न हुई।
- देशों के बीच आर्थिक संकट के कारण तनाव बढ़ गया, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध के लिए जमीन तैयार हुई।
4. सरकारी नीतियों और हस्तक्षेप का उदय:
अमेरिका का "न्यू डील" कार्यक्रम:
- अमेरिका में, राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने 1933 में "न्यू डील" कार्यक्रम शुरू किया। इसमें बड़े पैमाने पर सरकारी हस्तक्षेप, सार्वजनिक कार्य कार्यक्रम, और बैंकिंग सुधार शामिल थे। यह नीति बाद में कई अन्य देशों के लिए एक मॉडल बनी।
अन्य देशों में सरकारी हस्तक्षेप:
- कई देशों ने आर्थिक संकट से निपटने के लिए सरकारी हस्तक्षेप की नीति अपनाई। ब्रिटेन, फ्रांस, और स्कैंडिनेवियाई देशों ने अपने-अपने तरीकों से आर्थिक पुनर्प्राप्ति के प्रयास किए।
- सोवियत संघ ने महान मंदी के दौरान अपनी योजना आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया और पश्चिमी पूंजीवादी देशों की असफलताओं को उजागर किया।
5. द्वितीय विश्व युद्ध के लिए पृष्ठभूमि तैयार:
- आर्थिक अस्थिरता और वैश्विक संकट ने देशों के बीच तनाव को बढ़ाया। जर्मनी, जापान, और इटली जैसे देशों ने अपनी सैन्य ताकत बढ़ाई और विस्तारवादी नीतियां अपनाईं।
- आर्थिक संकट के कारण उत्पन्न असंतोष और चरमपंथ ने द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की, जो 1939 में शुरू हुआ।
6. वैश्विक आर्थिक संरचना में परिवर्तन:
- महान मंदी के परिणामस्वरूप वैश्विक अर्थव्यवस्था की संरचना में बदलाव आया। सरकारों ने अधिक हस्तक्षेपकारी नीतियां अपनाईं, और केन्सियन अर्थशास्त्र को बढ़ावा मिला, जिसमें सरकार के खर्च और आर्थिक नियमन पर जोर दिया गया।
- अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की गई, ताकि भविष्य में ऐसी आर्थिक मंदी से बचा जा सके।
महान मंदी इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से गहरे परिवर्तन किए।महान मंदी के दौरान कई महत्वपूर्ण तिथियां और घटनाएं हुईं। यहां कुछ मुख्य तिथियों और उनके साथ जुड़े घटनाक्रमों का विवरण दिया गया है:
महत्वपूर्ण तिथियां और घटनाएं:
24 अक्टूबर 1929 - "ब्लैक थर्सडे":
- इस दिन न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में भारी गिरावट शुरू हुई। निवेशक घबरा गए और अपने शेयर बेचने लगे। इस दिन लगभग 12.9 मिलियन शेयर बेचे गए, जो उस समय एक रिकॉर्ड था।
29 अक्टूबर 1929 - "ब्लैक ट्यूसडे":
- यह दिन स्टॉक मार्केट के इतिहास में सबसे खराब दिन के रूप में जाना जाता है। इस दिन स्टॉक की कीमतों में भारी गिरावट आई। कुल 16 मिलियन शेयर बेचे गए, जिससे बाजार पूरी तरह से ध्वस्त हो गया। यह गिरावट महान मंदी की शुरुआत मानी जाती है।
1930 - बैंक विफलताएं शुरू:
- 1930 में, बैंक विफलताएं बढ़ने लगीं। लोग अपने पैसे निकालने के लिए बैंकों पर धावा बोलने लगे, जिससे कई बैंक बंद हो गए। इससे आर्थिक स्थिति और खराब हो गई।
- 1932 तक, अमेरिका में बेरोजगारी दर 25% तक पहुंच गई थी। लाखों लोग बेरोजगार और बेघर हो गए। इस वर्ष राष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने जीत हासिल की।
- 1932 तक, अमेरिका में बेरोजगारी दर 25% तक पहुंच गई थी। लाखों लोग बेरोजगार और बेघर हो गए। इस वर्ष राष्ट्रपति चुनाव हुआ, जिसमें फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने जीत हासिल की।
4 मार्च 1933 - फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट का राष्ट्रपति पद ग्रहण:
- फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने राष्ट्रपति पद संभाला और तुरंत अपने "न्यू डील" कार्यक्रमों की शुरुआत की। इसका उद्देश्य आर्थिक पुनर्प्राप्ति और लोगों के लिए राहत प्रदान करना था।
1933 - बैंकिंग अवकाश और "फायरसाइड चैट्स":
- रूजवेल्ट ने बैंकों को स्थिर करने के लिए एक बैंकिंग अवकाश की घोषणा की और अपने पहले "फायरसाइड चैट" में जनता को संबोधित किया, जिससे लोगों का बैंकों में विश्वास बहाल हुआ।
1935 - सोशल सिक्योरिटी एक्ट पारित:
- न्यू डील के तहत, 1935 में सोशल सिक्योरिटी एक्ट पारित हुआ, जिसने बुजुर्गों, बेरोजगारों और गरीबों को सहायता प्रदान करने के लिए एक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली स्थापित की।
1939 - महान मंदी का अंत:
- द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ, युद्ध उत्पादन और रोजगार में वृद्धि हुई। इससे आर्थिक सुधार हुआ, और महान मंदी धीरे-धीरे समाप्त हो गई।
इन तिथियों और घटनाओं ने महान मंदी के दौरान अर्थव्यवस्था, समाज, और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला।
महान मंदी का भारत पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा, भले ही भारत सीधे तौर पर अमेरिकी या यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं से उतना जुड़ा नहीं था। ब्रिटिश शासन के अधीन होने के कारण, भारत की अर्थव्यवस्था पर इसके कई नकारात्मक प्रभाव पड़े। यहां इसके भारत पर प्रभावों का विवरण दिया गया है:
1. कृषि क्षेत्र पर प्रभाव:
- भारत की अर्थव्यवस्था उस समय मुख्यतः कृषि पर आधारित थी। मंदी के कारण वैश्विक बाजार में कृषि उत्पादों की मांग और कीमतों में भारी गिरावट आई। भारतीय किसानों को अपनी फसलें बेहद कम दामों पर बेचनी पड़ीं, जिससे उनकी आय घट गई।
- कपास, जूट, और चाय जैसे मुख्य फसलों की कीमतों में गिरावट आई, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ।
2. औद्योगिक क्षेत्र पर प्रभाव:
- भारत के सीमित औद्योगिक क्षेत्र पर भी इसका असर पड़ा। खासकर कपड़ा उद्योग और अन्य विनिर्माण इकाइयां मंदी की चपेट में आईं।
- कारखानों में उत्पादन कम हो गया और रोजगार के अवसर घट गए, जिससे औद्योगिक श्रमिकों की स्थिति खराब हो गई।
3. व्यापार और निर्यात पर प्रभाव:
- भारत का विदेशी व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ। ब्रिटिश शासन के तहत, भारत का अधिकांश निर्यात ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों को होता था। मंदी के कारण इन देशों में आयात की मांग घट गई, जिससे भारत का निर्यात घट गया।
- जूट, चाय, और तंबाकू जैसे उत्पादों के निर्यात में भारी गिरावट आई, जिससे भारतीय व्यापार घाटे में चला गया।
4. बेरोजगारी और गरीबी:
- महान मंदी के कारण बेरोजगारी बढ़ी। कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोग बेरोजगार हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में गरीबी बढ़ गई।
- गांवों में खाद्य संकट उत्पन्न हो गया और लोग भुखमरी की कगार पर पहुंच गए।
5. ब्रिटिश राज की नीतियों का प्रभाव:
- ब्रिटिश सरकार ने भारत से अधिक राजस्व वसूली करने और अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भारतीय किसानों और व्यापारियों पर अधिक कर लगाए। इससे लोगों की आर्थिक स्थिति और बिगड़ गई।
- मुद्रा की कीमत घटने से किसानों को अपने उत्पादों के लिए उचित मूल्य नहीं मिल सका।
6. स्वाधीनता आंदोलन पर प्रभाव:
- आर्थिक संकट ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नई ऊर्जा दी। लोग ब्रिटिश शासन से नाराज हो गए क्योंकि उन्हें लगता था कि ब्रिटिश नीतियों के कारण उनकी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है।
- इस समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में "नमक सत्याग्रह" और "स्वदेशी आंदोलन" जैसे आंदोलनों ने गति पकड़ी, जिससे लोगों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश बढ़ा।
7. महात्मा गांधी और कांग्रेस की प्रतिक्रिया:
- गांधीजी ने आर्थिक आत्मनिर्भरता और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने खादी और स्थानीय कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया जा सके।
महान मंदी का भारत पर गहरा असर पड़ा और इसने भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। इस आर्थिक संकट ने भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष बढ़ाया और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।
अंत और विरासत:
महान मंदी का अंत मुख्यतः द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के साथ हुआ, जब युद्ध के प्रयासों के लिए उत्पादन बढ़ा। इस घटना ने सरकार की आर्थिक नीतियों और वित्तीय विनियमन पर गहरा प्रभाव डाला, जिससे भविष्य में ऐसी संकटों से बचने के उपाय किए गए।
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