रोलेट ऐक्ट (Rowlatt Act 1919) और जलियांवाला बाग हत्याकांड
1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में लागू किया गया रोलेट ऐक्ट एक बेहद विवादास्पद कानून था। इस कानून के तहत, सरकार को किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार करने और दो साल तक बिना किसी कारण के जेल में रखने का अधिकार दिया गया था। इस कानून का उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाना था, लेकिन इसका असर आम लोगों पर भी पड़ा। यह कानून भारतीयों के नागरिक अधिकारों का घोर उल्लंघन था और इसने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ रोष पैदा किया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड
रोलेट ऐक्ट के विरोध में 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा आयोजित की गई थी। इस सभा में हजारों लोग एकत्र हुए थे। सभा के दौरान, ब्रिटिश सेना के कमांडर जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के अपने सैनिकों को भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दिया। इस गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। यह हत्याकांड भारतीय इतिहास का सबसे काला अध्याय है।
दोनों घटनाओं का संबंध
जलियांवाला बाग हत्याकांड रोलेट ऐक्ट का सीधा परिणाम था। रोलेट ऐक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने यह क्रूर कदम उठाया था। इस हत्याकांड ने भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुस्सा और नाराजगी को और बढ़ा दिया।
रोलेट ऐक्ट (Rowlatt Act):
पृष्ठभूमि:प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में कई कठोर कानून लागू किए थे, जिनके जरिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचलने का प्रयास किया गया। युद्ध समाप्ति के बाद, भारतीय जनता को उम्मीद थी कि ब्रिटिश सरकार उन्हें कुछ स्वतंत्रता प्रदान करेगी। लेकिन इसके विपरीत, 1919 में ब्रिटिश सरकार ने रोलेट ऐक्ट (Rowlatt Act) पारित किया, जिससे भारतीयों में आक्रोश की लहर दौड़ गई।
रोलेट ऐक्ट का प्रावधान:
रोलेट ऐक्ट को "काला कानून" भी कहा जाता था क्योंकि इस कानून के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को अत्यधिक शक्तियाँ मिल गईं। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में बंद किया जा सकता था, उसे बिना कारण बताए हिरासत में लिया जा सकता था, और उसे किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता नहीं मिलती थी। यह कानून नागरिक स्वतंत्रता पर सीधा आक्रमण था और भारत में भारी विरोध का कारण बना।
जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre):
तिथि: 13 अप्रैल 1919स्थान: अमृतसर, पंजाब
पृष्ठभूमि:
जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक काला अध्याय है। रोलेट ऐक्ट के विरोध में भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन हो रहे थे। 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में ब्रिटिश प्रशासन द्वारा दो राष्ट्रवादी नेताओं, सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के खिलाफ जनता में आक्रोश था। इसके बाद अमृतसर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। ब्रिटिश प्रशासन ने इसके जवाब में मार्शल लॉ लगा दिया और शहर को सैन्य नियंत्रण में ले लिया।
हत्याकांड का विवरण:
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन, अमृतसर के जलियांवाला बाग में हजारों लोग एक शांतिपूर्ण सभा के लिए इकट्ठा हुए थे। इस सभा में महिलाएं, बच्चे और बूढ़े लोग भी शामिल थे। ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने बिना किसी चेतावनी के वहां पहुंचकर सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। इस बाग का एक ही संकरा प्रवेश द्वार था और लोग वहाँ से बाहर नहीं निकल सके। सैनिकों ने गोलियों की वर्षा कर दी, जिससे सैकड़ों निर्दोष लोग मारे गए।
परिणाम:
इस हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया। महात्मा गांधी और अन्य नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया। इस घटना ने भारतीय जनता में ब्रिटिश शासन के प्रति गहरा आक्रोश पैदा किया और उन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने संघर्ष को और भी तेज़ कर दिया।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का प्रभाव इतना गहरा था कि यह भारतीयों के मन में ब्रिटिश शासन के प्रति गुस्से और अविश्वास का प्रतीक बन गया।
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रोलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड के प्रभाव:
1. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उग्रता का आगमन:
- राष्ट्रीय आंदोलन का विस्तार: जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। पहले जहाँ आंदोलन मुख्य रूप से अहिंसक था, अब लोगों के मन में आक्रोश बढ़ गया और स्वतंत्रता संग्राम में उग्रता आई। इसके बाद कई आंदोलनकारियों ने सशस्त्र संघर्ष का रास्ता अपनाया।
- महात्मा गांधी का नेतृत्व: गांधीजी ने इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन (1920-22) की शुरुआत की। उनका मानना था कि ब्रिटिश सरकार का शासन अनैतिक हो गया है और इसका विरोध करना अब प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है।
2. ब्रिटिश सरकार की आलोचना:
- अंतर्राष्ट्रीय निंदा: जलियांवाला बाग हत्याकांड की आलोचना न केवल भारत में बल्कि विश्व भर में हुई। ब्रिटिश संसद में भी कई सदस्यों ने जनरल डायर के इस कृत्य की निंदा की। हालाँकि, कई ब्रिटिश नागरिकों ने डायर की प्रशंसा भी की, जिसने यह दर्शाया कि ब्रिटिश साम्राज्य का एक वर्ग किस प्रकार की सोच रखता था।
- हंटर आयोग: ब्रिटिश सरकार ने इस हत्याकांड की जांच के लिए हंटर आयोग का गठन किया। हालांकि, आयोग ने जनरल डायर को दोषी ठहराया, लेकिन कोई सख्त सजा नहीं दी गई, जिससे भारतीय जनता में और अधिक आक्रोश फैल गया।
3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का रुख:
- ब्रिटिश सरकार से रिश्ते में बदलाव: कांग्रेस के अंदर नरम दल और गरम दल के बीच की खाई इस घटना के बाद और गहरी हो गई। नरम दल जो अब तक संवैधानिक सुधारों के जरिए स्वराज की मांग कर रहा था, अब गरम दल के साथ मिलकर असहयोग और प्रतिरोध की रणनीति अपनाने लगा।
- स्वराज की मांग: जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद भारतीय जनता और कांग्रेस का रुख पूरी तरह से बदल गया। स्वराज या पूर्ण स्वतंत्रता की मांग अब और अधिक जोर पकड़ने लगी।
4. असहयोग आंदोलन:
- अहिंसात्मक आंदोलन की दिशा: महात्मा गांधी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ एक असहयोग आंदोलन की घोषणा की, जिसके तहत लोगों से ब्रिटिश शासन, न्यायपालिका, और शिक्षा प्रणाली का बहिष्कार करने की अपील की गई। इस आंदोलन ने ब्रिटिश प्रशासन को हिलाकर रख दिया और ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार व्यापक रूप से हुआ।
5. क्रांतिकारी आंदोलनों का उभार:
- युवाओं का आक्रोश: इस घटना ने भारतीय युवाओं के बीच क्रांतिकारी आंदोलन को और भी बल दिया। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का रास्ता चुना।
- हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA): जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उग्रवादी संगठनों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियों को बढ़ावा देना शुरू किया, जिसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना था।
6. ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति अविश्वास:
- जनता का मानसिक परिवर्तन: इस घटना के बाद ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति भारतीय जनता का अविश्वास और भी बढ़ गया। जनता ने यह महसूस किया कि ब्रिटिश शासन कभी भी भारतीयों की भलाई के लिए नहीं था और यह केवल उनके अधिकारों को कुचलने के लिए ही था।
- सांस्कृतिक जागरूकता: इस हत्याकांड ने भारतीयों को उनके सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के प्रति जागरूक किया और स्वतंत्रता संग्राम में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संचार हुआ।
7. दीर्घकालिक परिणाम:
- ब्रिटिश शासन का अंत: हालांकि जलियांवाला बाग हत्याकांड से ब्रिटिश शासन तुरंत समाप्त नहीं हुआ, लेकिन यह घटना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई। इस घटना ने अंततः 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य के पतन की नींव रखी।
- मनोवैज्ञानिक प्रभाव: भारतीय जनता के मन में गहरी चोट लगी, जो वर्षों तक उनके संघर्ष को प्रज्वलित करती रही। इस घटना ने भारतीयों को यह सिखाया कि उनकी स्वतंत्रता की लड़ाई केवल उनके हाथों में है और ब्रिटिश शासन से किसी भी प्रकार की अपेक्षा निरर्थक है।
इस प्रकार, रोलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ जनसंघर्ष को मजबूत किया।
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