सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)


 सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसे महात्मा गांधी द्वारा 1930 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ शुरू किया गया था। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों का सविनय उल्लंघन करना था, अर्थात शांतिपूर्ण ढंग से उन कानूनों की अवज्ञा करना, जो भारतीय जनता के हितों के विरुद्ध थे।


आंदोलन की पृष्ठभूमि

भारत में 1920 के दशक में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था। जब गांधी जी ने 1929 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता की मांगों को अनदेखा करने के बाद सविनय अवज्ञा आंदोलन की योजना बनाई, तब उनकी मुख्य मांगें थीं:

  1. ब्रिटिश साम्राज्य का अंत।
  2. भारतीय जनता को स्वशासन का अधिकार।
  3. नमक कर जैसे अन्यायपूर्ण करों का उन्मूलन।

नमक सत्याग्रह

इस आंदोलन का सबसे प्रसिद्ध हिस्सा था "नमक सत्याग्रह"। गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर के खिलाफ दांडी मार्च की योजना बनाई। 12 मार्च, 1930 को गांधी जी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी (गुजरात) तक लगभग 240 मील की यात्रा शुरू की। उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर 6 अप्रैल, 1930 को समुद्र के किनारे पहुंचकर नमक बनाया, जो ब्रिटिश कानून के खिलाफ था।

नमक सत्याग्रह न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ आर्थिक संघर्ष का प्रतीक था, बल्कि यह राष्ट्रीय असंतोष और एकजुटता का प्रतीक भी बन गया।

आंदोलन का विस्तार

नमक सत्याग्रह के बाद आंदोलन पूरे देश में फैल गया। लोग नमक कानून का उल्लंघन करने के साथ-साथ विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, कर न देने, और ब्रिटिश संस्थाओं का विरोध करने लगे। आंदोलन में सभी वर्गों के लोग शामिल थे - किसान, मजदूर, महिलाएं, और युवा।

सरकार की प्रतिक्रिया

ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए कड़े कदम उठाए। हजारों सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें स्वयं महात्मा गांधी और कांग्रेस के प्रमुख नेता भी शामिल थे। पुलिस ने हिंसक दमन का सहारा लिया, लेकिन आंदोलन की व्यापकता को पूरी तरह से रोक नहीं पाए।

गांधी-इरविन समझौता

आखिरकार, ब्रिटिश सरकार को गांधी जी के साथ बातचीत के लिए मजबूर होना पड़ा। मार्च 1931 में गांधी-इरविन समझौता हुआ, जिसके तहत सरकार ने कुछ राजनीतिक कैदियों को रिहा किया और नमक कानून को नरम किया। इसके बदले गांधी जी ने आंदोलन को स्थगित कर दिया और लंदन में होने वाले गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का फैसला किया।

आंदोलन का प्रभाव

हालांकि सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारत को तुरंत स्वतंत्रता नहीं दिलाई, लेकिन इसने ब्रिटिश सरकार पर भारी दबाव बनाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। यह आंदोलन भारतीय जनता की राजनीतिक जागरूकता और स्वाधीनता की इच्छा को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने का एक साधन बना।

यह आंदोलन अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित था, जिसने न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्षरत देशों को प्रेरित किया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. 26 जनवरी, 1930 - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा "पूर्ण स्वराज" (पूर्ण स्वतंत्रता) की घोषणा की गई। इस दिन को भारतीय स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया, जिससे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष की शुरुआत हुई।

  2. 31 जनवरी, 1930 - महात्मा गांधी ने वायसराय लॉर्ड इरविन को एक पत्र लिखा, जिसमें 11 मांगें रखीं। इन मांगों को पूरा न करने पर आंदोलन की चेतावनी दी गई थी।

  3. 12 मार्च, 1930 - महात्मा गांधी ने साबरमती आश्रम से "दांडी मार्च" की शुरुआत की। यह मार्च नमक सत्याग्रह का प्रारंभ था, जो सविनय अवज्ञा आंदोलन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था।

  4. 6 अप्रैल, 1930 - गांधी जी और उनके अनुयायियों ने गुजरात के दांडी तट पर पहुंचकर नमक बनाया, जो ब्रिटिश सरकार के नमक कानून का उल्लंघन था। इस घटना ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत को चिन्हित किया।

  5. 4 मई, 1930 - महात्मा गांधी को नमक सत्याग्रह के कारण गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी ने आंदोलन को और उग्र बना दिया।

  6. मई-जून, 1930 - सविनय अवज्ञा आंदोलन ने पूरे भारत में जोर पकड़ा। हजारों लोग ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन करते हुए गिरफ्तार किए गए।

  7. 12 मार्च, 1931 - गांधी-इरविन समझौता हुआ, जिसके तहत आंदोलन को स्थगित कर दिया गया और सरकार ने कुछ मांगें स्वीकार कीं, जैसे राजनीतिक कैदियों की रिहाई।

  8. 29 मार्च, 1931 - कराची अधिवेशन में कांग्रेस ने गांधी-इरविन समझौते का अनुमोदन किया और इसे औपचारिक रूप से स्वीकार किया।

  9. सितंबर-दिसंबर, 1931 - गांधी जी ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया, लेकिन सम्मेलन असफल रहा और गांधी जी बिना किसी ठोस परिणाम के भारत लौट आए।

  10. जनवरी, 1932 - गांधी जी और कांग्रेस ने फिर से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की, जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने और अधिक दमनकारी नीतियों का सहारा लिया और कई नेताओं को फिर से गिरफ्तार कर लिया।

आंदोलन का समापन

1934 में, गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनता की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित की और ब्रिटिश साम्राज्य को यह महसूस कराया कि भारत में अब स्वतंत्रता की मांग को अनदेखा नहीं किया जा सकता।

सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था, जिसने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी और भारत को स्वतंत्रता की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाया। इसकी भूमिका, परिणाम, और निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

भूमिका 

सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि में निम्नलिखित कारक प्रमुख थे:

  1. स्वराज की मांग: 1929 में लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने "पूर्ण स्वराज" का संकल्प लिया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम की दिशा और उद्देश्य स्पष्ट हो गए। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय जनता की मांगों की अनदेखी से असंतोष बढ़ता गया।

  2. ब्रिटिश नीतियों का विरोध: ब्रिटिश सरकार की अन्यायपूर्ण नीतियों, जैसे नमक कर, विदेशी वस्त्रों का उपयोग, और भारतीय किसानों पर अत्यधिक कराधान ने लोगों को उनके खिलाफ खड़े होने पर मजबूर किया।

  3. अहिंसा और सत्याग्रह: महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसात्मक सत्याग्रह का सिद्धांत इस आंदोलन का प्रमुख आधार था। गांधी जी ने शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से ब्रिटिश कानूनों का उल्लंघन करने की योजना बनाई, जिससे ब्रिटिश साम्राज्य की नैतिक वैधता को चुनौती दी जा सके।

परिणाम 

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कई महत्वपूर्ण परिणाम हुए:

  1. भारतीय जनता की व्यापक भागीदारी: यह आंदोलन भारत के विभिन्न वर्गों, जैसे किसान, मजदूर, व्यापारी, महिलाएं, और युवा, के व्यापक सहयोग और समर्थन को संगठित करने में सफल रहा। इससे जनता में स्वतंत्रता के प्रति चेतना और आत्मविश्वास बढ़ा।

  2. ब्रिटिश सरकार पर दबाव: आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को काफी हद तक हिला दिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने लाखों सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया, लेकिन फिर भी आंदोलन की आग बुझाने में असफल रहे। यह सरकार के लिए स्पष्ट संकेत था कि भारत में उनका शासन अस्थिर हो रहा है।

  3. गांधी-इरविन समझौता: 1931 में इस समझौते के तहत आंदोलन को अस्थायी रूप से समाप्त किया गया। गांधी जी ने गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का वादा किया, जबकि ब्रिटिश सरकार ने कुछ राजनीतिक कैदियों को रिहा किया और नमक कानून में संशोधन किया।

  4. स्वतंत्रता संग्राम की नई दिशा: आंदोलन ने भारत की स्वतंत्रता की दिशा में नए रास्ते खोले। इससे भारतीय जनता में यह विश्वास जगा कि स्वतंत्रता प्राप्ति अब संभव है, और इससे कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक स्थिति भी मजबूत हुई।

निष्कर्ष 

सविनय अवज्ञा आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया। इसके निष्कर्ष निम्नलिखित हैं:

  1. अहिंसा और सत्याग्रह का प्रभाव: यह आंदोलन सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों की शक्ति को सिद्ध करने वाला था। गांधी जी के नेतृत्व में भारतीयों ने दिखाया कि बिना हिंसा के भी अन्याय का विरोध किया जा सकता है और साम्राज्य को चुनौती दी जा सकती है।

  2. स्वतंत्रता संग्राम में निर्णायक योगदान: इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन को कमजोर किया और भारतीयों को यह विश्वास दिलाया कि उनकी एकजुटता और दृढ़ता ब्रिटिश साम्राज्य को परास्त कर सकती है।

  3. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: सविनय अवज्ञा आंदोलन ने अन्य देशों के स्वतंत्रता आंदोलनों को भी प्रेरित किया। गांधी जी की अहिंसा और शांतिपूर्ण प्रतिरोध की नीतियों ने विश्वभर में औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्षरत आंदोलनों को दिशा दी।

  4. राजनीतिक चेतना का विस्तार: इस आंदोलन ने भारत में राजनीतिक जागरूकता और राष्ट्रीय एकता को और अधिक मजबूत किया। यह एक ऐसा मंच बना, जिसने भविष्य के आंदोलनों और अंततः भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी।

सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार की वैधता को न केवल भारतीय जनता की नजरों में कमजोर किया, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि भारतीय स्वतंत्रता की मांग को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।


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