श्वेत क्रांति (1970) White Revolution
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श्वेत क्रांति भारत में दुग्ध उत्पादन और विपणन से संबंधित एक बड़ी सामाजिक-आर्थिक आंदोलन थी, जिसे मुख्य रूप से "ऑपरेशन फ्लड" (Operation Flood) के रूप में जाना जाता है। इसे 1970 में शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य देश में दूध की आपूर्ति को बढ़ाना और ग्रामीण इलाकों में आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना था। इस आंदोलन को "श्वेत क्रांति" का नाम दिया गया क्योंकि यह दूध और दुग्ध उत्पादों से जुड़ी हुई थी, जो सफेद रंग का प्रतीक हैं।
श्वेत क्रांति का नेतृत्व डॉ. वर्गीज कुरियन द्वारा किया गया था, जिन्हें "भारत के दूध आदमी" के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अमूल (AMUL) ब्रांड के तहत इस क्रांति को सफलतापूर्वक लागू किया। श्वेत क्रांति ने न केवल भारत को दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना दिया, बल्कि इसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और लाखों किसानों को एक स्थिर आय स्रोत प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
श्वेत क्रांति के प्रमुख पहलू:
1.ऑपरेशन फ्लड:
ऑपरेशन फ्लड तीन चरणों में लागू किया गया था:
- पहला चरण (1970-1980): इस चरण का उद्देश्य देश के प्रमुख शहरों में दूध की आपूर्ति को बढ़ाना था।
- दूसरा चरण (1981-1985): इस चरण में दुग्ध सहकारी समितियों का विस्तार किया गया और दूध उत्पादन को अधिक से अधिक गाँवों तक पहुँचाया गया।
- तीसरा चरण (1985-1996): इस चरण में दुग्ध विपणन को संगठित किया गया और इसे राष्ट्रीय स्तर पर फैलाया गया। इस चरण में भारत के सभी प्रमुख दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों को सहकारी समितियों के माध्यम से जोड़ा गया।
2. दुग्ध सहकारी समितियाँ:
ऑपरेशन फ्लड का आधार सहकारी समितियाँ थीं। प्रत्येक गाँव में एक दुग्ध सहकारी समिति बनाई गई, जहाँ किसान अपना दूध जमा करते थे। ये समितियाँ दूध को संग्रहित करके शहरों में बेचने का काम करती थीं। इससे बिचौलियों की भूमिका खत्म हो गई और किसानों को दूध की उचित कीमत मिलने लगी।
3. अंतर्राष्ट्रीय सहायता:
ऑपरेशन फ्लड को सफल बनाने के लिए यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) ने सहायता प्रदान की। इस सहायता का उपयोग दुग्ध उत्पादन के विकास और विपणन के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में किया गया।
4. दूध की गुणवत्ता और आपूर्ति श्रृंखला:
श्वेत क्रांति के दौरान दुग्ध की गुणवत्ता और उसकी आपूर्ति श्रृंखला में सुधार लाया गया। आधुनिक तकनीकों और शीतलन संयंत्रों का उपयोग करके दूध की ताजगी और गुणवत्ता बनाए रखने पर जोर दिया गया।
5. ग्रामीण सशक्तिकरण:
श्वेत क्रांति ने ग्रामीण इलाकों में किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया। इससे महिलाओं को भी रोजगार के अवसर मिले, क्योंकि वे दुग्ध उत्पादन और विपणन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं।
श्वेत क्रांति के प्रभाव:
- दुग्ध उत्पादन में वृद्धि: श्वेत क्रांति के कारण भारत का दुग्ध उत्पादन बहुत बढ़ गया और यह दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बन गया।
- ग्रामीण विकास:इस क्रांति ने ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति दी और किसानों की आय में सुधार किया।
- महिलाओं का सशक्तिकरण: महिलाओं को दुग्ध उत्पादन और सहकारी समितियों में भागीदारी के माध्यम से आर्थिक स्वतंत्रता मिली।
- दूध की उपलब्धता: शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में दूध की आपूर्ति में निरंतरता बनी रही, जिससे पोषण स्तर में सुधार हुआ।
निष्कर्ष:
श्वेत क्रांति ने भारत के दुग्ध उद्योग को पूरी तरह से बदल दिया और इसे एक आत्मनिर्भर क्षेत्र बना दिया। इसने लाखों किसानों को एक नई पहचान और आर्थिक स्थिरता प्रदान की। आज भी, श्वेत क्रांति को भारत के सबसे सफल ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में से एक माना जाता है।
मुख्य आंकड़े:
- दुग्ध उत्पादन: 1950-51 में भारत का दुग्ध उत्पादन लगभग 17 मिलियन टन था, जो 2019-20 तक बढ़कर 198.4 मिलियन टन हो गया।
- किसानों की भागीदारी: लगभग 10 मिलियन किसानों ने श्वेत क्रांति के दौरान सहकारी समितियों के माध्यम से भाग लिया।
- दुग्ध उत्पादन में वृद्धि: श्वेत क्रांति के चलते भारत ने 1998 में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बनने का गौरव प्राप्त किया।
श्वेत क्रांति का भारत पर व्यापक और दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा। इसके प्रभाव को निम्नलिखित प्रमुख क्षेत्रों में देखा जा सकता है:
1. दुग्ध उत्पादन में वृद्धि:
- श्वेत क्रांति के परिणामस्वरूप, भारत का दुग्ध उत्पादन अत्यधिक बढ़ा। 1970 में जहां भारत में दुग्ध उत्पादन 22 मिलियन टन था, वहीं 2020 तक यह बढ़कर 198.4 मिलियन टन हो गया।
- भारत ने 1998 में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनने का गौरव प्राप्त किया।
2. ग्रामीण विकास और आर्थिक सशक्तिकरण:
- इस आंदोलन ने ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए आर्थिक स्थिरता प्रदान की। सहकारी समितियों के माध्यम से दूध बेचने से किसानों को सीधे लाभ मिला, जिससे उनकी आय में सुधार हुआ।
- दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में करीब 10 मिलियन किसानों की भागीदारी हुई, जिनमें से अधिकांश छोटे और सीमांत किसान थे।
3. बिचौलियों की समाप्ति:
- श्वेत क्रांति ने बिचौलियों की भूमिका को खत्म कर दिया, जिससे किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य मिलने लगा। इसने किसानों को बाजार से सीधे जोड़ने में मदद की।
4. महिलाओं का सशक्तिकरण:
- दुग्ध उत्पादन और सहकारी समितियों में महिलाओं की बड़ी भागीदारी देखी गई। इससे महिलाओं को रोजगार के अवसर मिले और उनकी आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि हुई।
- महिलाओं की भूमिका दुग्ध उत्पादन में महत्वपूर्ण रही, जिससे ग्रामीण इलाकों में उनका सामाजिक और आर्थिक स्थिति बेहतर हुई।
5. पोषण और खाद्य सुरक्षा:
- श्वेत क्रांति के कारण दूध की उपलब्धता में वृद्धि हुई, जिससे पोषण स्तर में सुधार हुआ। दुग्ध उत्पादों की बढ़ती उपलब्धता ने बच्चों और वयस्कों के आहार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- दूध को एक सस्ती और पौष्टिक खाद्य सामग्री के रूप में सभी वर्गों तक पहुँचाया गया, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पोषण सुरक्षा में सुधार हुआ।
6. सहकारी मॉडल की सफलता:
- अमूल ब्रांड की सफलता ने सहकारी मॉडल को पूरे देश में लोकप्रिय बना दिया। यह मॉडल अन्य क्षेत्रों में भी अपनाया गया, जैसे कि फल, सब्जियाँ, और अन्य कृषि उत्पाद।
- गुजरात का अमूल मॉडल पूरे भारत में सहकारी समितियों के गठन का आधार बना, जिससे किसानों को एक संगठित ढांचा मिला।
7. शहरी क्षेत्रों में दूध की आपूर्ति:
- ऑपरेशन फ्लड ने बड़े शहरों और कस्बों में दूध की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित की। इससे शहरों में दूध की कमी और महंगाई पर नियंत्रण पाया गया।
- बड़े पैमाने पर शीतलन संयंत्र और परिवहन सुविधाओं का विकास हुआ, जिससे दूध की गुणवत्ता बनाए रखी गई और उपभोक्ताओं तक ताजगी से पहुंचाया गया।
8. नवीन तकनीक और विज्ञान का समावेश:
- श्वेत क्रांति के दौरान दूध उत्पादन, संग्रहण और प्रसंस्करण के लिए नवीनतम तकनीकों का उपयोग किया गया। इसने दुग्ध उद्योग में वैज्ञानिक प्रगति को भी बढ़ावा दिया।
- पशुओं की बेहतर नस्लें, उन्नत पशुपालन तकनीक और दूध उत्पादन की नई विधियाँ विकसित की गईं, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार हुआ।
निष्कर्ष:
श्वेत क्रांति ने भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक बदलाव की एक नई धारा पैदा की। इसने भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया और देश को दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसका असर न केवल दुग्ध उद्योग पर बल्कि ग्रामीण विकास, महिलाओं के सशक्तिकरण, और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ा।
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