हरित क्रांति (1960-1970) Green Revolution
हरित क्रांति (Green Revolution) एक महत्वपूर्ण कृषि सुधार अभियान था, जो 1960 के दशक में भारत और अन्य विकासशील देशों में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य अनाज उत्पादन को बढ़ाना और खाद्यान्न की कमी को दूर करना था।
हरित क्रांति का परिचय:
हरित क्रांति की शुरुआत भारत में 1960 के दशक में हुई, जब देश में खाद्यान्न की भारी कमी हो गई थी। उस समय भारत में सूखा, अकाल और बढ़ती जनसंख्या के कारण खाद्य उत्पादन में संकट गहरा गया था। इस स्थिति को देखते हुए वैज्ञानिक और नीति-निर्माताओं ने खेती के लिए उन्नत तकनीक और नई किस्मों के बीज का उपयोग करके उत्पादन बढ़ाने का निर्णय लिया।
हरित क्रांति के प्रमुख घटक:
1. उन्नत बीजों का उपयोग: हरित क्रांति के दौरान हाइब्रिड और उच्च उत्पादकता वाली गेहूं, धान, और मक्का जैसी फसलों के नए बीज विकसित किए गए। इन बीजों का उत्पादन अधिक था और वे कीट और बीमारियों के प्रति अधिक सहनशील थे।
2. रासायनिक उर्वरकों का उपयोग: उत्पादन बढ़ाने के लिए खेतों में रासायनिक उर्वरकों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया। उर्वरकों के उपयोग से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
3. सिंचाई सुविधाओं में सुधार: सिंचाई के साधनों में सुधार किया गया। नहरों, नलकूपों और अन्य सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से खेती योग्य भूमि को सिंचित किया गया, जिससे फसल की उत्पादकता बढ़ी।
4. कृषि यंत्रीकरण: कृषि कार्यों को आसान और तेज़ बनाने के लिए ट्रैक्टर, थ्रेशर, और अन्य कृषि यंत्रों का उपयोग किया गया। इससे खेतों में काम करने की गति और दक्षता में सुधार हुआ।
5. कीटनाशकों और रसायनों का प्रयोग: फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशकों और रसायनों का व्यापक उपयोग किया गया। इससे फसलों की क्षति कम हुई और उत्पादन में वृद्धि हुई।
1. खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि: हरित क्रांति के कारण भारत में गेहूं और चावल का उत्पादन कई गुना बढ़ गया। इसके परिणामस्वरूप भारत आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा और खाद्यान्न आयात में कमी आई।
2. कृषि क्षेत्र में सुधार: कृषि उत्पादन बढ़ने से किसानों की आय में वृद्धि हुई और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन स्तर में सुधार हुआ।
3. भूखमरी में कमी: उत्पादन में वृद्धि के कारण खाद्यान्न की उपलब्धता बढ़ी और भूखमरी जैसी समस्याओं में कमी आई।
हरित क्रांति की चुनौतियाँ:
1. पर्यावरणीय प्रभाव: रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी की उर्वरता घटने लगी और जल स्रोतों में प्रदूषण बढ़ा।
2. आर्थिक असमानता: हरित क्रांति का लाभ मुख्यतः बड़े और मध्यम किसानों को मिला, जबकि छोटे किसान इसका लाभ नहीं उठा सके। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता बढ़ी।
3. मोनोकल्चर खेती: हरित क्रांति के कारण कुछ विशेष फसलों पर अधिक ध्यान दिया गया, जिससे फसल विविधता में कमी आई और जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
निष्कर्ष:
हरित क्रांति ने भारत और अन्य विकासशील देशों में खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश को खाद्य संकट से बाहर निकाला। हालांकि, इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी आईं जिनका समाधान पर्यावरणीय संतुलन और छोटे किसानों के विकास पर ध्यान केंद्रित करके किया जा सकता है।
हरित क्रांति के बारे में कुछ रोचक तथ्य निम्नलिखित हैं:
1.नामकरण का श्रेय: 'हरित क्रांति' शब्द का सबसे पहले उपयोग अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक **विलियम गॉड** ने किया था। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग 1968 में किया, जब भारत में कृषि में हुई उन्नति को एक क्रांतिकारी परिवर्तन के रूप में देखा गया।
2. गेहूं की बढ़ती पैदावार: हरित क्रांति के दौरान सबसे अधिक वृद्धि गेहूं की पैदावार में हुई। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को इस क्रांति का सबसे बड़ा लाभ हुआ, और पंजाब को 'भारत का ब्रेडबास्केट' (Breadbasket of India) कहा जाने लगा।
3. नॉर्मन बोरलॉग का योगदान: हरित क्रांति के जनक के रूप में जाने जाने वाले डॉ. नॉर्मन बोरलॉग को शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने गेहूं की उन्नत किस्में विकसित कीं, जिन्हें भारत में अपनाया गया और जिसने उत्पादन में तेजी से वृद्धि की।
4. अनुमानित वृद्धि: हरित क्रांति से पहले 1964 में भारत में गेहूं का उत्पादन केवल 12.3 मिलियन टन था। लेकिन 1971 तक यह बढ़कर लगभग 23 मिलियन टन हो गया। यह कृषि में अभूतपूर्व वृद्धि थी।
5. फार्म-इनपुट उद्योग: हरित क्रांति के कारण उर्वरक, कीटनाशक, और कृषि यंत्रों का उद्योग तेजी से बढ़ा। इससे न केवल किसानों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि हुई बल्कि देश के औद्योगिक विकास को भी बल मिला।
6. सिंचाई में सुधार: हरित क्रांति ने न केवल उत्पादन तकनीक में बदलाव लाया, बल्कि जल संसाधनों का बेहतर उपयोग करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। इसके तहत बड़े पैमाने पर नहरों और जलाशयों का निर्माण किया गया।
7. भोजन का आत्मनिर्भरता की ओर कदम: हरित क्रांति से पहले, भारत को अपने खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने के लिए अमेरिका और अन्य देशों से आयात करना पड़ता था। हरित क्रांति के बाद भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया और धीरे-धीरे खाद्यान्न निर्यातक बन गया।
8. चावल की नई किस्म: गेहूं के साथ-साथ, चावल की नई उन्नत किस्मों जैसे **IR8** चावल ने भी हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह किस्म कम समय में तैयार होती थी और इसकी पैदावार भी अधिक होती थी।
9. तकनीकी शिक्षा: हरित क्रांति के दौरान कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना और विस्तार पर जोर दिया गया। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) जैसी संस्थाओं ने वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा दिया और किसानों को नई तकनीकों से परिचित कराया।
10. स्वतंत्रता के बाद की सबसे बड़ी सफलता: भारत की स्वतंत्रता के बाद हरित क्रांति को देश की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक माना जाता है। इसने भारत को खाद्यान्न संकट से बाहर निकाला और देश की आत्मनिर्भरता में योगदान दिया।
हरित क्रांति ने न केवल कृषि उत्पादन में वृद्धि की बल्कि भारत के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने पर भी गहरा प्रभाव डाला। यह एक ऐतिहासिक परिवर्तन था जिसने देश के भविष्य को आकार दिया।
हरित क्रांति का प्रभाव बहुत व्यापक और गहरा था। इसने भारतीय कृषि, अर्थव्यवस्था, समाज, और पर्यावरण पर कई प्रकार से प्रभाव डाला। इस क्रांति के प्रभाव को मुख्य रूप से सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूपों में देखा जा सकता है।
1. सकारात्मक प्रभाव:
(i) खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि:
हरित क्रांति का सबसे बड़ा सकारात्मक प्रभाव खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के रूप में देखा गया। गेहूं और चावल जैसी फसलों की पैदावार में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। इसने भारत को खाद्यान्न संकट से बाहर निकाला और देश खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर हो गया।
(ii) आर्थिक सुधार:
कृषि उत्पादन में वृद्धि से किसानों की आय में सुधार हुआ और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास हुआ। इससे किसानों की जीवनशैली में सुधार आया और कृषि क्षेत्र में समृद्धि आई। हरित क्रांति ने कई ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करने में मदद की।
(iii) कृषि यंत्रीकरण:
कृषि में मशीनों और आधुनिक तकनीकों के उपयोग को बढ़ावा मिला। ट्रैक्टर, थ्रेशर और सिंचाई के नए साधनों के उपयोग से खेती के कार्यों को सरल और तेज़ बनाया गया, जिससे उत्पादन की लागत कम हुई और श्रम की बचत हुई।
(iv) वैज्ञानिक खेती का प्रसार:
हरित क्रांति ने वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा दिया। किसानों ने नई तकनीकों और उन्नत बीजों का उपयोग करना शुरू किया, जिससे खेती में उत्पादकता और कुशलता में सुधार हुआ। कृषि विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों की स्थापना से कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हुआ।
(v) कृषि निर्यात में वृद्धि:
खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के कारण भारत ने न केवल अपने आंतरिक खाद्यान्न की आवश्यकताओं को पूरा किया, बल्कि खाद्यान्न का निर्यात भी शुरू किया। इससे विदेशी मुद्रा आय में भी वृद्धि हुई।
2. नकारात्मक प्रभाव:
(i) पर्यावरणीय हानि:
रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी की उर्वरता में कमी आई और जल संसाधनों में प्रदूषण बढ़ा। इससे मिट्टी के दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। भूजल का अत्यधिक दोहन भी एक बड़ी समस्या बन गया।
(ii) असमानता में वृद्धि:
हरित क्रांति का सबसे अधिक लाभ बड़े किसानों को मिला, जिनके पास संसाधन और जमीन की उपलब्धता थी। छोटे और सीमांत किसानों को नई तकनीकों और संसाधनों का उपयोग करने में कठिनाई हुई। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक असमानता बढ़ी और समाज में विभाजन गहरा हुआ।
(iii) क्षेत्रीय असमानता:
हरित क्रांति का प्रभाव मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी राज्यों (पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश) में देखा गया, जबकि पूर्वी और दक्षिणी राज्यों में इसका प्रभाव कम रहा। इससे क्षेत्रीय असमानता बढ़ी और कुछ राज्य कृषि उत्पादन में अग्रणी हो गए, जबकि अन्य पिछड़ गए।
(iv) फसल विविधता में कमी:
हरित क्रांति के कारण गेहूं और धान जैसी फसलों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया। इससे फसल विविधता में कमी आई और कई पारंपरिक फसलें उपेक्षित हो गईं। यह जैव विविधता के लिए हानिकारक साबित हुआ।
(v) पानी की कमी और सिंचाई पर दबाव:
सिंचाई के लिए अत्यधिक भूजल उपयोग के कारण कई क्षेत्रों में पानी की कमी हो गई। हरित क्रांति की फसलें, विशेषकर गेहूं और चावल, अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें थीं, जिससे जल संकट बढ़ गया।
निष्कर्ष:
हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम उठाने में मदद की और लाखों लोगों की जीवनशैली में सुधार लाया। लेकिन इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ और दुष्प्रभाव भी उत्पन्न हुए, जैसे पर्यावरणीय संकट, आर्थिक और क्षेत्रीय असमानता। भविष्य के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम सतत और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाएं और हरित क्रांति की चुनौतियों का सामना करने के लिए उपयुक्त नीतियाँ विकसित करें।
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